आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी


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नैनागिरी शीतकाल में एक बार संघस्थ नव दीक्षित शिष्य ने आचार्य भगवंत से निवेदन करते हैं कि- रात्रि प्रतिक्रमण हम लोग रात में पढ़ नहीं सकते हैं इसलिए आपकी आज्ञा चाहते हैं कि बाहर प्रकाश उत्पन्न करने वाली लालटेन हैं,क्या उसके प्रकाश में बैठकर प्रतिक्रमण कर सकते हैं। 

आचार्य भगवंत ने कहा- प्रातः कालीन लेना चाहिए।शिष्यों ने कहा प्रातः आप अन्य विषयों को कक्षा में पढ़ाते हैं,बाद में चर्या का समय हो जाता है इसलिए समय नहीं मिलता।
आचार्य भगवान ने कहा- *प्रतिक्रमण आधा आहार से पहले कर लिया करो आधा आहार के बाद कर लेना। शिष्यों ने मन में जान लिया कि दीपक के प्रकाश में पढ़ने की आज्ञा नहीं है।सब अपने स्थान पर चले गए।दो माह बाद वे सभी आकर कहते हैं कि अब हमें प्रतिक्रमण याद हो गया। *2 माह संबंधी दोषों के प्रायश्चित चाहते हैं.... आचार्य भगवन ने कहा- *अभी तो आप 2 महीने की दोषों के ही भागी बने हैं।यदि रात में पढ़ने की आज्ञा देते,तो जीवन पर्यंत दोष लगता रहता।

📖 अनासक्त महायोगी पुस्तक से साभार 📖
✍ मुनि श्री प्रणम्यसागर जी महामुनिराज

#मैंबूढ़ानहींहुआहूँ -आचार्य विद्यासागर जी #AcharyaVidyasagar 

नेमावर जी से करीब 7 माह बाद बिहार हुआ। सभी सोच रहे थे कि हरदा जाएंगे। लेकिन आचार्य श्री ने को किसी ने बताया कि नहर वाले कच्चे रास्ते से सीधे भादू गांव जा सकते हैं, परन्तु हरदा छूट जाएगा। आचार्य श्री ने उस कच्चे रास्ते से ही बिहार कर दिया। मैं (एलक प्रज्ञासागर) एवं छूल्लक चंद्र सागर, एलक निर्भय सागर और 1-2 महाराज साथ थे। पगडंडी थी, तो मैं और एलक श्री निर्भयसागर जी दोनों तेज गति से आचार्य श्री के आगे आगे चल रहे थे। आचार्य श्री हम लोगों के पीछे तेजी से आ रहे थे। पर थोड़ी देर में हम लोगों के पास आकर बोले- "क्यों हमें बूढ़ा समझ रखा है क्या?" हम लोगों हँस दिए। तभी आचार्य श्री ने हम लोगों को हँसी के तौर पर छेड़ा,और बोले- *"भैया! जवानों के साथ हमें भी जवान होना पड़ता है।" हम सभी उनके साथ हंसने लगे।

मैंने आचार्य श्री से बोला- *"आप अभी बूढ़े थोड़ी हुए हैं, आप अभी तो जवान हैं।" आचार्य श्री बोले- *"यह बात अलग है, पर आप लोगों जैसे जवान तो नहीं हूँ।" हमने कहा- *"आचार्य श्री जवानों के साथ जो रहता है, वह कभी बूढ़ा नहीं होता। शरीर से बूढ़ा होना बुरा नहीं माना जाता, मन से बूढ़ा होना ही बूढ़ापन माना जाता है। आप तो मन से सदा जवान रहते हैं।" आचार्य श्री हंसने लगे और बोले- *"हाँ, चलो मेरे जवानों। सभी ने एक स्वर में हँस दिया, और कदमों को तेज गति दी। शाम होने के पूर्व गंतव्य स्थान पर पहुंच गए।_


अपना देश  अपनी भाषा  इंडिया हटाओ, भारत लाओ। – आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी



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