भावों की निर्मल सरिता में अवगाहन करने आया हूँ - परम पूज्य आचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज जी

"अमृत वाणी" 

भोपाल। भावों की निर्मल सरिता में अवगाहन करने आया  हूँ  इन पंक्तियों को जीवन में चरितार्थ करने पर ही केवल ज्ञान का मार्ग प्रशस्त होगा और में भी इसी मार्ग पर चलने का प्रयास कर रहा हूँ । उक्त उदगार परम पूज्य आचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज जी ने आज 1 ओक्टूबर को हबीबगंज में आयोजित पुजन कार्यक्रम में अपने प्रवचनों में व्यक्त किये ।।  
                   
उन्होंने कहा कि नीलिमा एक कषाय का रूप है । भले ही आप कितने दावे करो की हमारे खानदान में कोई कषाय नहीं कर्ता परंतु आपका चेहरा आपकी कषाय की कहानी बता देता है । मन बचन और काया से ,कृत से, कारित से ,अनुमोदना से,प्रत्यक्ष से , परोक्ष से यही भाव  करें कि हे भगवसन हमें इस कषाय से रहित होना है । आपने यदि मंदिर में कोई वेदी निर्माण कराया है तो ये मत कहो की बो आपकी बेदी है क्योंकि इसमें आपकी मान कषाय झलकती है जो आपको अधोगति की और ले जाती है । उन्होंने कहा की आपको जो अधिकार धर्म क्षेत्र में दिए गए हैं उनका सदुपयोग करो क्योंकि दुरूपयोग करने से आपके ही धर्म की हानि होगी ।    

इससे पूर्व आज आचार्य श्री की पूजन का शौभाग्य जैन मंदिर झिरनों से जुड़े भक्तो को मिला जिसमें शिकरचन्द गोधा, अपूर्व पवैया , डॉ,अखिलेश जैन  भाग्योदआय सागर , डॉ स्वाति जैन ,  साकेत जैन , वीरेंद्र हुंडी , आदि ने गुरुवर की पूजन भक्ति भाव से की ।।                                

आज गुरुवर की आहरचरया का सौभाग्य  प्रोफ़ेसर एन सी जैन के परिवार को प्राप्त हुआ ।

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इंडिया हटाओ, भारत लाओ। – आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी



शब्द संचयन 
पंकज प्रधान  

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