इंडिया का अर्थ है अपराधी, क्रूर, लड़ाकू, पुराने ढर्रे का व्यक्ति । "शरद पूर्णिमा जन्मोत्सव" परम पूज्य आचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज

"अमृत वाणी" रविवारीय धर्मसभा

              इस अवसर पर गुरुवर ने प्रवचनों में कहा कि मूकमाटी इस गोष्टी में विद्वानों ने तत्वों का उदघाटन किया। जिव्हा लोभ के कारण रोग को निमंत्रण दिया जा रहा है और चिकित्सकों को निमंत्रण दिया जा रहा है। जानबूझकर रोग को निमंत्रण देने से बचना चाहिए। 

     उन्होंने कहा कि गुणों के प्रति श्रद्धा भाव होना चाहिए, दुखित है, द्रवित है उसके प्रति आँखों में पानी आना चाहिए। पानी विज्ञान की देनें नहीं है बो तो भीतर से प्रकट होता है। बो पानी एक सात्विक जल है जिसमें दया का प्रतिष्ठापन हुआ है। सब अपने अपने ढंग से रोते हैं, दूसरों को देखकर रोना प्रारम्भ कर देते हैं। ये मानसिक गतिविधियां कष्ट में हुए व्यक्ति को देखकर होनी चाहिए। अर्थ को कोशकारों ने द्रव्य कहा है,व्याकरंकारों ने उसे द्रवण शील बताया है। दुसरे दुखी व्यक्ति को देखकर भी द्रवित न होकर केवल अपने बारे में सोच रहा है।
     
    उन्होंने कहा कि पहले नामकरण भविष्य को उज्ज्वलता के हिसाब से किया जाता था। हमने भारत का नामकरण इंडिया कर दिया। इंडिया का अर्थ है अपराधी, क्रूर, लड़ाकू, पुराने ढर्रे का व्यक्ति, ये इसलिए जानबूझकर अंग्रेजों ने किया है। भरत चक्रवर्ती के नाम से ये भरत भूमि थी जिसे विदेशी प्रभावों ने गुलामी की मानसिकता बाला इंडिया बना दिया। हम अपने नामकरण को, अपने प्राचीन इतिहास को स्वयं भुला रहे हैं। अंग्रेजियत मानसिकता के कारण प्रतिभा को दवा रहे है जो कार्य बुद्धि से करना चाहिए आज इंटरनेट के आदि बनकर कर रहे हैं।

     उन्होंने कहा कि पश्चाताप के पूर्व ही जाग्रत होना आवश्यक है। हम पूरब बाले, ये पश्चिम बाले हैं, ये दक्षिण बाले हैं ,सही दिशा का बोध हो जाय ,सोई चेतना जग जाय ये पुरुषार्थ तो करना पडेगा । स्वाभिमान के सूत्र, संस्कार की तरफ कदम बढ़ानेकी जरूरत है। आस्था साहस की जननी होती है। परंतु विदेशी शिक्षा की बजह से हम खान पान शुद्ध आहार से भी दूर हो रहे हैं। आपका तो संध्याकाळ पूर्ण हो रहा है नई पीढ़ी का संध्याकाल प्रारम्भ हुआ है। आपकी यात्रा पूर्ण होने से आने बाली पीढ़ी की यात्रा पूर्ण नहीं होती। संध्या की लाली सुलाने बाली होती है और सुबह की लाली जगाने बाली होती है। मूक माटी ने सबको बोलना सिखाया है खुद मौन रहकर। उसने रक्त का संचार चलायमान रखने के सूत्र दिए हैं । पेट ने पीठ से जबसे मैत्री की है जिव्हा दुखी हो गई है अथार्थ ज्यादा पेट हो जाय तो पीठ की तरफ देख नहीं पाते बीमार हो जाते हैं फिर जिव्हा भूखी रह जाती है। 
    
     उन्होंने आगे कहा कि आज जो परिग्रह की होड़ लगी है जो विदेशी बैंकों में धन जमा किया जा रहा है बो अन्धकार की और ले  जाने बाला है। लज्जाजनक कार्य है काला धन जमा करना। आज हम लोगों के प्रमाद के कारण ही शिक्षा के क्षेत्र में अंग्रेजी का थोपा जाना भी लज्जाजनक है ,पहले सारे शोध हिंदी में किये जाते थे आज अंग्रेजी में किये जा रहे हैं। वेद प्रताप वेदिक एक साहित्यकार हैं जिन्होंने विदेश में हिंदी भाषा में शोध प्रबंध किया है क्योंकि अभिव्यक्ति जो हिंदी में हो सकती है बो दूसरी विदेशी भाषा में नहीं हो सकती है। पिता की भाषा नहीं होती मात्र भाषा होती है क्योंकि जो 9 माह गर्भ में रखकर संस्कार दिए जाते हैं बो पिता से नहीं मिल पाते। अपनी मातृभाषा के प्रति अडिग रहना चाहिए । गवेषणा का अर्थ है चिंतन की धरा गहराई तक पहुँचना , जो देश भक्त होता है बो चिंतन को मातृभाषा में ही प्रस्तुत करता है । हजारों ग्रन्थ जिन भाषा में लिखे गए हैं उस भाषा को लोप कर दोगे तो अपनी संस्कृति से युवा पीढ़ी को विमुख कर दोगे।

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भोपाल। मूक माटी संगोष्ठी का समापन सत्र सुभाष स्कूल मैदान में प्रारम्भ हुआ। सर्वप्रथम प्रो अमिता मोदी और प्रो रश्मि जैन ने मूक माटी के सन्दर्भ में विचार व्यक्त किये। प्रो उमाशंकर शुक्ल ने कहा कि मानव मंगल की अनेक बातें इसमें कही गई हैं। प्रो जे के जैन सागर ने कहा कि ये वैज्ञानिक तथ्यों से परिपूर्ण है। छत्तीसगढ़ राज्य शिखर सम्मान से विभूषित प्रो चंद्रकुमार जैन राजनांदगांव ने संचालन का कठिन और साहसपूर्ण कार्य अपने कन्धों पर दायित्व के रूप में संभाल रखा था। अगले वक्ता के रूप में डॉ बारेलाल जैन ने आतंकवाद का जो सन्दर्भ मूक माटी में दिया है वो दूरूदर्शिता का परिणाम है। डॉ सरोज गुप्ता ने भी अपने विचार रखे। डॉ सुरेश सरल जी ने कहा कि गुरुवर ने इसमें धरती की तुलना माता की मार्दव गोद से की है। डॉ शैलेन्द्र जैन ने कहा की मूक माटी में शैक्षणिक विचारों का समागम है।

      मूकमाटी गुजराती संस्करण के अनुवादक डॉ भारत कापडिया ने भी विचार रखे। डॉ सुदर्शनलाल जी बनारस ने इसमें धार्मिक तत्वों के समावेश की बात कही। वरिष्ठ समाजसेवी दिलीप मेहता की धर्मपत्नी डॉ संगीता मेहता इंदौर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मुकमाटी में जीवन का संपूर्ण सार है।

      इस बीच गुरुवर का मंगल आगमन हुआ और आदिनाथ भगवान् काे चित्र अनावरण और दीप प्रज्ज्वलन adgp,अनुराधा शंकर, निर्मल झांझरी, महावीर जी सदलगा, सुशील शाह भीलबाड़ा, मोहनलाल छीपा कुलपति, डी सी जैन हाई कोर्ट मुम्बई, ने किया। नितिन नांदगांवकर ने सूंदर गीत का मंगलाचरण किया।
     
     adgp अनुराधा शंकर ने कहा कि कवि सूर्य के सामान होता है और निर्ग्रन्थ, सत्य द्रष्टा के सामान कवि हो तो बो महासूर्य के सामान है। मूक भाषा का संगीत अद्भुत, अप्रतिम है, कुम्भ में प्रकृति, और समग्र सृष्टि है। साहित्यकार उज्जवल पाटनी ने इस अवसर कहा कि कुछ यक्ष प्रश्नों का सटीक उत्तर सिर्फ गुरुवर के ही पास है। ज्ञान के पथ पर आपसे सभी आलोकित हैं फिर भी आप अभी भी प्रकाश की खोज में रहते हैं ये आपका बड़प्पन है। मूकमाटी महाकाव्य से परे है, काल खंड है। ऐंसे महाकाव्य को पढ़ने के लिए पात्रता होना जरूरी है। के सी जैन कोलकाता ने भी अपने विचार प्रकट किये।

        राजस्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने कहा कि मैं आभारी हूँ गुरुवर का जो राजधानी पर कृपा की। नंदीश्वर देशना का विमोचन किया गया। इस अवसर पर सभी विद्वानों का प्रतीक चिन्ह से सम्मान किया गया। श्री मोहनलाल जी छीपा का विशेष सम्मान किया गया। उन्होंने मूक माटी संगोष्ठी के सफल आयोजन के लिए सभी का आभार व्यक्त किया। संचालन सुधीर जैन ने किया।   राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित प्रो चंद्रकुमार जैन ने मूकमाटी संगोष्ठी का सार प्रस्तुत किया। अंत में संगोष्ठी में पधारें सभी विद्वानों का श्रीमती सुधा मलैया जी ने आभार व्यक्त किया।

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इंडिया हटाओ, भारत लाओ। – आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी

शब्द संचयन 
पंकज प्रधान  

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