शिक्षा और भारत समापन सत्र


5 नवम्बर 2016
➖➖➖➖➖➖➖
भोपाल। मंगलाचरण से समापन सत्र प्रारम्भ हुआ। अतिथियों का सम्मान प्रमोद हिमांशु,राकेश ओएसडी ने किया।

       इश्वरदयाल जी ने कहा कि संस्कारों को रोपण करने के पूर्व उन्हें समझना होगा। दोष सभी में जन्म से आते हैं परंतु उन दोषों को दूर करके सदविचारों का अमृत पान करने का काम माता पिता को करना होता है। हमारे अवचेतन में जो छाप पड़ जाती हैं उसमें से विकृत छापों को बाहर करके चेतनता का रोपण किया जाना चाहिए। चरित्र निर्माण की दिशा में काम होना चाहिए।

      हथकरघा संघ के अमित भैया ने कहा कि आज का युवा विकास की धारा में बह रहा है बो अतीत की तरफ लौटने में संकोच कर रहा है जबकि विकसित राष्ट्र भारत के अतीत से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ रहे हैं। इन राष्ट्रों में शिक्षा के साथ रोजगारोन्मुखी होने की कला भी सिखाई जाती है। हम स्टेटस के चक्कर में बच्चों को शिक्षा के साथ हुनर दिलबाने में संकोच करते हैं। गुरुवर ने हमें प्रेरित किया कला कौशल के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए और हमने सबको साथ लेकर हथकरघा का कार्य प्रारम्भ किया है जो अब चरम पर पहुँच रहा है।

     श्रीमती साधना जैन ने कहा क़ि आज बो बचपन जो सड़कों पर अनाथ घूम रहा है उसे भी शिक्षा से जोड़ना हमारे समाज का कर्तव्य है। इन बच्चों का जीवन नरकमयी होता है, सेवा भारती के माध्यम से ऐंसे बच्चों को स्कूल में भेजने का कार्य कर रहे हैं। बेटियों को पढने का कार्य भी इस मिशन का हिस्सा है।

      इस अवसर पर प्रो बृषभ प्रसाद जैन ने कहा कि भाषा ही भावों की अभिव्यक्ति है जिसके माध्यम से अपना सशक्तिकरण प्रस्तुत किया जा सकता है। आज भारतीय भाषाओँ के ऊपर दमन चक्र चलाया जा रहा है जिसके कारण शिक्षा में विदेशी भाषाओँ को थोपने का काम चल रहा है। हम सर्वांगीण और सर्वोदयी शिक्षा को मजबूत बनाने का कार्य करें।

     डॉ सुधा मलैय्या ने कहा कि जिससे भारतीय संस्कृति का शासन, प्रशासन चलायमान होता है ऐंसे भारतीय मूल अबधारणाओं बाली शिक्षा की आवश्यकता है। मुझे जो राष्ट्र से प्राप्त हुआ है उसे सक्षम होने पर लौटाने की भावना है। आज संस्कृति पर होने बाले कुठाराघात को रोकने बाली शिक्षा के नवनिर्माण की जरूरत है। सांस्कृतिक चेतना के जागरण के लिए जन जन को जाग्रत करने की आवश्यकता है। संस्कृति की पहचान अपनी भाषा से ही हो सकती है।

       जयंत सहस्त्र बुद्धे ने कहा की अपनी पहचान अपने प्राचीन विज्ञानं से है परंतु आज भौतिक विज्ञानं की चकाचोंध में उसे हमने भुला दिया है।

जगदीशचन्द्र बसु जी ने ये सिद्ध कर दिया की चेतना से ही विज्ञान का अस्तित्व होता है।आयुर्वेद विज्ञानं भारत का मुख्य विज्ञान है जिसके कारण भारत विश्व में श्रेस्ठ माना जाता है।_

      माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता के कुलपति कुठियाला जी ने कहा कि आज शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपुर्व क्रांति लाने की जरूरत है। गोष्ठियों और परिचर्चाओं के माध्यम से काम नहीं चलने बाला इसे अमलीजामा पहनाने के लिए समय आ चूका है। सरकार से अपनी बात कहने का तरीका बदलना होगा तभी नयी शिक्षा नीति का लागूकरण हो सकता है। पत्रकार जगत के माध्यम से ही आवाज बुलंद हो सकती है। लोक नीति बनाने की जरूरत है तभी जैंसा भारत चाहते हैं बैंसा हो पायेगा। हिंदी समाचार पत्रों में आज अंग्रेजी के अनेक शब्दों का चलन हो रहा है उसे रोकने के लिए प्रयास किया जा रहा है।

      अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए अतुल कोठारी जी ने कहा कि अनुमोदना भी महत्वपूर्ण होती है जो श्रोताओं ने की है। शिक्षा में आज संस्कारों की खोज हो रही है पहले शिक्षा का अर्थ ही संस्कार होता था। परिवार,महाविद्यालय और समाज ये शिक्षा के केंद्र हैं। समस्या के समाधान की प्रक्रिया स्वयं से प्रारम्भ होनी चाहिए। मैं भारतीय शिक्षा के सशक्तिकरण की शुरुआत खुद से करूँगा तो बदलाव की बयार स्वयं बहने लगेगी। शिक्षा में सेवा की भावना को भी समाहित करना होगा। पर्यावरण के संरक्षण के लिए भी पहले परिवार और समाज से शुरुआत करनी होगी। प्राचीन ज्ञान पर भाषण बंद करके अपनी भाषा के साहित्य का प्रकाशन प्रारम्भ करें। अपने दायित्वों का निर्धारण करके ही इस शिक्षा क्रांति के समर में हम कूदेंगे तभी समग्र भारत का निर्माण होगा।

     इस अवसर पर पुज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि विचार विमर्श हुआ तो निष्कर्ष भी बाद में निकलेगा। ज्ञान मेरा स्वाभाव है पर जब सामने कुछ होता है तब जान पाता हूँ। विचारों के लिए बस्तु चाहिए, कमी हो तो उसकी पूर्ती ज्ञान के माध्यम से कर सकते है। प्रयोग के आभाव में ज्ञान जाग्रत नहीं होता। जो है उसका आभाव नहीं होता, जो नहीं है उसका उत्पाद नहीं होता। ज्ञान का धीमा पड़ना ही अज्ञानता होता है। हमने प्रकाश को काम में लिया है पर प्रकाश के बारे में कुछ नहीं किया। अज्ञानता में भूल जाता है अपने अस्तित्व को। दुनिया को देखोगे तो मैं को नहीं देखोगे और मैं को देखोगे तो दुनिया दिखाई नहीं देगी। अपनी दृष्टि नासा पर रखोगे तो आपको निंद्रा नहीं आएगी। नासा का मतलब है की किशी आशा पर दृष्टि रखोगे तो कुछ नहीं मिलेगा।

    जैन संत हमेशा उनोदर का पालन करते हैं ताकि उदर में हवा पानी की जगह रहे। आप रात दिन बिना ब्रेक लगाए खाने में लगे हुए हो और रोग को बढाबा दे रहे हो।

     लाल बहादुर शास्त्रीजी भी आदर्श शिक्षक रहे हैं जो आहार का भी विचार रखते थे। मोदी जी भी अमेरिका गए थे तो अपने नवरात्री ब्रत पर कायम रहे।

     उन्होंने कहा कि ज्ञान एक गुण है जो कभी कर्ता नहीं बनता है। शक्ति काम में लायी जाती है बो काम नहीं करती है। हम अधूरा जीवन जी रहे हैं, जीने की कला को सीखना होगा। जीवन में प्रयोगों को प्राथमिकता देना चाहिए, प्रयोगधर्मी बनना चाहिए। प्राणों तक आपको शिक्षा का प्रयोग करना है, विदेश को छोड़कर अपने तक आना होगा। भाषा को भावों के माध्यम से दिल तक और प्राणों तक ले जाएँ। पढ़ना लिखना बहार तक रह जाता है भीतर जाने के लिए सुनने की कला सीखनी होगी। शब्दों को सुनकर ही भीतर की यात्रा हो सकती है। हम कहते हैं आत्मा मरता नहीं है परंतु पल पल आत्मा को मार रहे हैं। समाधिमरण एक मृत्युंजयी महोत्सब है अनंत की यात्रा तक जाने के लिए। जीवन के मूल्यांकन के लिए प्रबंध शोध की जरूरत है। विश्विद्यालय खोलने से पहले अपने मन को खोलो, भीतर की तरंग को खोलो। देश को छोड़कर विदेश जा रहे हैं ये एक वरदान नहीं है अभिशाप साबित हो रहा है। मृत्यु के भय से आधे प्राण पहले ही निकलते हैं। डर और भय को दूर करने के लिए ही संतों का आशीष आपके ऊपर रहता है। राष्ट्रीय पक्ष से नीति बनाओ, पक्ष को छोडो, पक्षपात को छोडो और मैं भी इसी पक्ष का पक्षधर हूँ। पंख होते हुए उड़ान भूल गए, ज्ञान रहते हुए भी अज्ञान दशा को प्राप्त हो गए। और सब मिलकर उड़ान भरो आप तो सोने की चिड़िया हो। आज जो तरंग उठी है उसे और तेजी से ऊपर उठाओ। हमें रणनीति और राजनीति से ऊपर उठकर प्राचीन भारत की नीति को अपनाने की जरूरत है।

Comments