भोपाल। परम पूज्य आचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज जी का भव्य पिच्छिका परिवर्तन का ससंघ समारोह सुभाष चंद्र बोस के नाम से स्थापित प्रदेश के उत्कृष्ट विद्यालय सुभाष विद्यालय के विशाल प्रांगण में,जिसमें 50000 लोग उनका बेसब्री से इन्तेजार कर रहे हैं। सबके मन में भक्ति की लहरों का समुन्दर हिलोरे मार रहा है। बो सौभाग्यशाली श्रावक जिनको नयी पिच्छी प्रदान करना है और बो पुण्यशाली श्रावक जिनको वीतरागिओं की पिच्छी प्राप्त होना है सभी बैचेन थे और उन सभी के आराध्य मंच पर आ गए।
मंगलाचरण मोनिका शाह ने प्रस्तुत किया। चित्र अनावरण जयंत मलैय्या वित्त मंत्री, प्रभात मुम्बई, रंजीत गुणबांन बिधायक, कैलाश परमार नगरपालिका अध्य्क्ष आष्टा, डॉ सुधा मलैया, प्रमोद हिमांशु ,कमल अजमेरा, मुकेश ढाना ने किया। मंगल कलश के पुण्यर्जकों को कलश प्रमोद हिमांशु, विनोद mpt, राकेश osd, ने प्रदान किये। इस अवसरर पर चातुर्मास के दौरान समाचारपत्रो में प्रकाशित समाचारो के संकलन की स्मारिका का विमोचन प्रवक्ता अंशुल जैन एवम् इंजी. सौरभ जैन ने करवाया।
मुनि श्री विन्रम सागरजी महाराज ने संचालन करते हुए कहा कि सब सौभाग्य शाली हैं जिनको आज ये सौभाग्य प्राप्त हो रहा है।
आचार्य श्री की पिच्छी प्राप्त करने का सौभाग्य आदित्य मनिया श्रीमती सविता मनिया को प्राप्त हुआ उन्होंने ही आचार्य श्री को नवीन पिच्छिका भी प्रदान की। मुनि श्री योग सागरजी महाराज को नयी पिच्छी ब्रह्मचारी ऋषभ जी दमोह ने दी। पुरानी पिच्छी श्रीचंद जैन श्रीमती शशि जैन विलहरा बालों ने प्राप्त की। बाकी सभी मुनिराजों को भी पुण्यशाली भक्तों ने नयी पिच्छी प्रदान की और पुराणी पिच्छी प्राप्त की। सभी लेने और देने बाले श्रावक सपरिवार मंच पर पहुंचे और भावबिभोर होकर पिच्छियाँ प्राप्त की और प्रदान की।
परम पूज्य आचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज जी कार्यक्रम स्थल पर आने के पूर्व अपर संचालक वित्त और चातुर्मास समिति की प्राशासनिक व्यवस्था के संयोजक नितिन नांदगांवकर के घर पर पहुँचे और वहा स्थित चैत्यालय के दर्शन किये। अपने घर पर नितिन जी ने भावबिभोर होकर उनका पाद प्रक्षालन किया।
सभा स्थल पर लोगों को पैर रखने का भी स्थान नहीं मिला तो उन्होंने बाहर लगी एलईडी में ही कार्यक्रम देखकर अपने आपको धन्य किया। मुनि श्री विनम्रसागर जी ने कहा की पूज्य आचार्य श्री अपने आप में दुनिया का सबसे बड़ा अतिशय हैं जिनके साथ अनेक अदृश्य शक्तियां चलती हैं। जिनशासन के देव भी जिनकी चरण वंदना करते हैं ऐंसे गुरुवर का साक्षात सानिध्य मिलना सबके लिए गौरव का बिषय है।
शीत कालीन वाचना हेतु समाज के बंधुओं ने श्रीफल भेंट किया।
इस अवसर पर परम पूज्य आचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज जी ने कहा कि कलश स्थापना भी यहीं हुई थी आज निष्ठापन में भी आप व्यवस्थित हैं। आज संयम दिवस है आपने ये अहिंसा के पालन के उपकरण दिए हैं। ये उपकरण बाहर के हैं हम भीतर के रत्नत्रय के उपकरण को कार्य में लेते हैं। भीतरी चर्या का पालन आस्था से होता है आस्था के माध्यम से ही भगवान की बाणी को हम सुनते और मानते हैं। तीर्थंकरों की परंपरा का बोध होता है उसी का अनुशरण हम करते हैं। श्रुत ज्ञान के माध्यम से ही तीर्थंकर ज्ञान मयि बाणी का प्रसारण करते हैं। हमारा सम्बन्ध, आपका सम्बन्ध अनादिकाल से है, जो निरंतर चला आ रहा है। आस्था का बिषय दूरदृष्टी को जाग्रत करता है।
गुरूवर ने कहा कि दोषों को हम दूर नहीं कर पा रहे हैं परंतु भारत भूमि की ऊर्जा में मुनियों तीर्थंकरों और महापुरुषों की सुगंध निरंतर बह रही है। पवित्र स्थानों पर जाकर हम उस भूमि को नमन करते हैं ये ही संस्कृति है। आज उपकरण दान देकर कुछ लोगों ने पुण्य प्रबल किया है परंतु अनुमोदना इस दुर्लभ दृश्य की आपने की है आप सभी पुण्यशाली हो। सभी को दर्शन हो रहे है इस दृश्य के और ध्वनि कानों तक पहुँच रही ये विज्ञान की दें है। विज्ञानं का सदुपयोग और दुरोपयोग आपके हाथ में है यदि सदुपयोग करेंगे तो हित आपका ही होगा। मनुष्य भव दुर्लभ है इसी से परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है। प्राचीन समय की साधना बहुत दुर्लभ साधना हुआ करती थी। संयम बहुत ही मजबूत हुआ करता था आज भी संयम की साधना होती है और भक्ति भी बहुत होती है क्योंकि भक्ति का मार्ग भी अनूठा मार्ग होता है। श्रद्धा और भक्ति की इस पराकाष्ठा को इसी तरह जाग्रत रखने की आवश्यकता है जिसमें आप सभी का कल्याण निहित है।
देवता भी मुनियों को आहार देने आतुर रहते हैं क्योंकि मुनि धर्म वीतरागिता को सम्बल प्रदान करने का श्रोत है। पिच्छी संयम का उपकरण है और आहार दान देना भी इस पिच्छी को देने के बराबर है इसलिए इस दान की अनुमोदना आपको भी इस मार्ग की और आरूढ़ होने की प्रेरणा देती है । आज के अवसर पर मैं यही कहूँगा कि राजधानी में आज ये चातुर्मास निर्विघ्न संपन्न हुआ है तो आपके पूर्वजों का इसमें कुछ न कुछ योगदान रहा है। हबीबगंज की ये भूमि जिनकी देन है वो साधुबाद के पात्र हैं।
प्राशुक आहार के साथ निहार की व्यवस्था में मुख्यमंत्री जी का भी योगदान सराहनीय है। नामकरण गर्भ में नहीं होंता जन्मकल्याण के बाद ही होता है भावना भाते रहिये नामकरण मंदिर का तो होता रहेगा।
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अपना देश अपनी भाषा
इंडिया हटाओ, भारत लाओ। – आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी
शब्द संचयन
पंकज प्रधान
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