"शिक्षा और भारत" शुभारम्भ सत्र

    चित्र अनावरण राज्यपाल बिहार श्री रामनाथ जी कोविन्द,रमेशचंद्र जी अग्रवाल,अतुल कोठारी जी ने किया फिर दीप प्रज्ज्वलित किया। श्रीमती और श्री कोविंद जी तथा अन्य अतिथियों ने गुरुवर के चरणों में श्रीफल समर्पित कर आशीष ग्रहण किया। सभी अतिथियों ने गुरुवर के करकमलों में शास्त्र भेंट किया। विद्या की परछाइयां नामक कृति का विमोचन किया गया। मंगलाचरण प्रतिभा स्थली की बहनों ने किया।

     कार्यक्रम संयोजक प्रो बृषभ प्रसाद जी जैन ने परिचर्चा की बिषय बस्तु पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शिक्षक और छात्र दोनों ही लगातार सीखने का प्रयत्न करते हैं। आज की भौतिक शिक्षा ने संस्कारों को छिन्न भिन्न कर दिया। प्राचीन परम्पराओं पर कुठाराघात किया गया इस प्रणाली के माध्यम से। सरकार नयी शिक्षा नीति में अमूल चूल परिवर्तन करे उसके लिए ये दो दिवसीय मंथन का  आयोजन है।

\       शिक्षा परिषद् के अतुल कोठारी ने कहा कि भारत में ही शिक्षा निहित है। शिक्षा के बिभिन्न आयामों को सीखने दुनिया भर के लोग यहां आते थे आज विदेशों में जाते हैं। जब हम भीतर की और झाँकने का प्रयास करते हैं तो सभी समस्याओं का समाधान मिल जाता है,एक दुसरे पर दोषारोपण करते हैं जबकि सभी की सामूहिक जिम्मेदारी बनती है शिक्षा की इस दशा के लिए। जातिवाद,भाषाबाद की गांठों को खोलने की जरूरत है। सबका कल्याण हो ऐंसी शिक्षा नीति बननी चाहिए। प्रत्येक नागरिक को राष्ट्र के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, ऐंसी शिक्षा की जरूरत है। शिक्षा की नींव को मजबूत बनाने की जरूरत है।शिक्षा को बदलना है तो पहले मातृभाषा को मजबूत बनाना होगा, विदेशी भाषा को थोपना देश के नागरिकों के अधिकारों पर कुठाराघात है। जिस देश को अपनी मात्रभूमि, मातृभाषा, पर अभिमान नहीं होगा बो देश कभी विकास नहीं कर सकता है । जैन धर्म के इतिहास को शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल होना चाहिए। इस मंथन से हम अच्छा समाधान लेकर ही उठें ये भावना है।

     लेखक संक्रान्त सानू ने कहा कि अभिभावक चाहते हैं की बच्चे का भविष्य उज्जवल हो। अंग्रेजी प्रगति की नहीं दुर्गति की भाषा है। सभी विकसित देश अपनी मातृभाषा के आधार पर ही विकास की धारा में बह रहे हैं। हमें शिक्षा में मातृभाषा का विकल्प खोलना होगा तभी शिक्षा में क्रांति आएगी।

    कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री रमेश चंद्र अग्रवाल ने कहा कि ये शिक्षा प्रणाली हमने नहीं बनाई अंग्रेजों ने थोपी है। 
अंग्रेजी स्कूलों में अपने बच्चों को पढाना हम गर्व का बिषय समझते हैं। भारत राजनीती के जाल में फंस गया है इसलिए अंग्रेजी से मुक्त नहीं हो पा रहा। आज शिक्षा के साथ रोजगार की चिंता भी करना पड़ेगा। हम स्वयं अपनी भाषा में बड़े मंचों पर अपनी बात कहना प्रारम्भ करेंगे तभी तस्वीर को बदल सकते हैं। आज युवा योग्य हैं परंतु भाषा की हीनभावना से जूझ रहे हैं। अपनी भावनाएं अपनी मातृभाषा में ही अच्छे तरीके से कर सकते हैं। प्रधान मंत्री,मुख्यमंत्री और राज्यपाल और आला अधिकारी आज गुरुवर के पास आ रहे हैं उसका एक ही कारण है सब भारतीय आध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त करना चाहते हैं।

        इस अवसर पर बिहार के राज्यपाल श्री रामनाथ कोविन्द ने कहा कि मैं यहाँ आचार्य श्री की अमृतमयि वाणी सुनने आया हूँ।आज नालंदा,विक्रमशिला और तक्षशिला हमारी प्राचीन शिक्षा के केंद्र रहे हैं जिसमें दुनिया के लोग आते थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति को जाना और दुनिया में बिस्तारित किया। तीर्थ परंपरा को आचार्य श्री आगे बढ़ा रहे हैं। मैं भी शिक्षा न्यास से जुड़ा रहा हूं ये अच्छा काम कर रहा है। जिनका बजूद नहीं है बे देश को अपना अधिकार समझते हैं। सही मायने में भारतीय परंपरा में पढ़ने और गढ़ने की परंपरा रही है। जो हुनर सीखने मिल रहा है उसे आचरण में लाने की परंपरा रही है। आज शिक्षा के सुधारों में समाधान की जरूरत है और आचार्य श्री ने कहा है कि जो भारत का अतीत रहा है उसे छोड़ना नहीं है तभी शिक्षा को मजबूत बनाया जा सकता है । समाधान अतीत में ही छिपा है बस उसे उजागर करने की जरूरत है। भारतीय जब गांब से शहर की और जाता है तो अपनी सजगता को, संस्कृति को लेकर चलता है।

      अतिथियों का स्वागत प्रमोद हिमांशु, राकेश ओएसडी, विनोद mpt, अशोक भाभा, सन्देश जैन, मोहनलाल छीपा, कमल अजमेरा ने किया।
       इस अवसर पर पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि बूँद बूँद के मिलन से जल में घट आ जाय बूँद मिले सागर से सागर बूँद समाय। एक बूँद दूसरी बूँद से मिल जाती है तो प्यास बुझाती है। सागर का अस्तित्व क्या है,उत्पत्ति कैंसे है ये जानना जरूरी है। लोग कहते है सरकार सुनती नहीं है, आपकी आवाज में दम होगी तो बेहरी सरकार भी सुन लेती है। स्वर के मिलते ही व्यंजन में गति आ जाती है, आप स्वर बन जाएँ तो सरकार व्यंजन बन जायेगी। कर्ता यदि सरकार है तो कार्य की अनुमोदना आपको करना है। 70 बर्षों में सरकार ने यदि शिक्षा की दिशा में नहीं सोचा तो आप ही सरकार को बनाने बाले हैं। विद्यालय का अर्थ नहीं जान पाये तो ये चल क्या रहा है क्यों स्कूल चलाए जा रहे हैं। आज बाबू बनने की जरूरत नहीं है क्योंकि इसका अभिप्राय मानसिक रूप से गुलामी करना है, सुभास चंद्र बोस ने अपनी माँ को पत्र लिख कर कहा था कि बाबू बनने से अच्छा है मैं राष्ट्र सेवा करूँ। आज नोकरी में पैकेज दहेज़ की तरह बन गया है जिसे पाने के लिए युवा लालायित हो रहे हैं। जिस वाक्य में कर्ता स्वतंत्र न हो उस वाक्य का कोई अर्थ नहीं है। बुद्धि यदि खराव हो जाय तो फिर ठीक नहीं हो सकती। ज्ञान को सही बिषय मिल जाय तो ज्ञान को सही दिशा मिल जाती है नहीं तो विकृति आने से ऊपर बाला भी नहीं रोक सकता है। हमारे यहां अंक से नहीं चलता अनुभव से चलता है इसलिए अनुभव जरूरी है। सरकार सिंधु है जनता बिंदु है। बैठने का नाम सरकार नहीं होता है उसे तो जनता के हित में चलते रहना चाहिए। अपने अतीत को पुनः जाग्रत करने की जरूरत है। केवल बाणी का मंथन करने से नवनीत नहीं मिल सकता। विदेशी शिक्षा नीति ने भारत के इतिहास को पीछे धकेल दिया है 70 बर्षों में भी मंथन से यदि कुछ नहीं निकला तो चिंता का बिषय है। कर्ता का काम करने का है जो अनुभवी लोग हैं उन्हें आगे आकर इस कार्य को आगे बढ़ाना चाहिए। अनुभवी शिक्षाविद् इस दिशा में कार्य करें परंतु इतिहास को सामने रखकर करें ,अपने इतिहास की अच्छाईओ को उजागर करें तो स्वतंत्रता के साथ न्याय हो सकेगा। संस्कृति को संरक्षित करने पर ही सुख शान्ति का अनुभब कर सकते हैं। आज श्रमिक बनकर ही हम राष्ट्र कल्याण की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। भारत की युवा शक्ति विराट है उसे केंद्रित करने की जरूरत है, उसे मूल तत्व से जोड़ने की जरूरत है। हम समय को भी बाँध सकते हैं यदि प्रतिभा का सही उपयोग करें।

    आचार्य श्री की आहारचर्या का सौभाग्य समर्पित और कर्मठ कार्यकर्ता जवाहर चौक जैन मंदिर के संयोजक और पंचायत कमेटी के ट्रस्टी सुनील पटेल के परिवार को प्राप्त हुआ।
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