आषाढ़ से चूका किसान और डाल से छूटा बंदर दोनों की स्थिति ख़राब ही होती है इसी प्रकार समय रहते मनुष्य यदि अपने नर भव को सफल बंनाने में चूक जाता है तो उसकी भी बुरी गत होती है।
"अमृत वाणी"
पंचकल्याणक महोत्सव की पूर्व बेला में गुरूवर के आशीर्वचन
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भोपाल। उक्त उदगार परम पूज्य आचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज जी ने आज जैन मंदिर भानपुर में अपने संक्षिप्त प्रवचनों में कहे।
उन्होंने कहा कि मन बड़ा ही चंचल होता है जिसे बांधना ठीक बैंसा ही होता है जैंसे बहती नदी पर बाँध बांधना। मनुष्य के मन की चंचलता उस बंदर के समान होती है जो एक डाल से दूसरी डाल पर उछल कूद करता फिरता है और जरा सी चूक में धड़ाम से जमीन पर आ गिरता है इसी प्रकार मनुष्य का मन इच्छाओं के बशीभूत होकर भौतिक चकाचौन्ध के पीछे दौड़ता है और समय की एक ठोकर से धड़ाम से गिर जाता है।
उन्होंने कहा कि किसी पुस्तक के प्रकाशन में यदि कोई त्रुटि रह जाती है तो फिर उसकी संशोधित प्रति प्रकाशित की जाती है परंतु आपके मन की अशुद्धि एक बार हो जाय तो फिर उसे शुद्ध करने का दूसरा मौका नहीं मिलता है। आज व्यवस्था करने के नाम पर अव्यवस्था ज्यादा फैलाई जाती है जबकि व्यवस्थित होने के लिए पहले अवस्थित होना पड़ता है। दूसरों को सम्भल कर चलने का उपदेश देने के पूर्व खुद सँभलने की जरूरत है क्योंकि हर कदम पर अपने ही बिछाए भ्रम जाल में फंसने का खतरा होता है, भ्रम जाल के मिथक को तोड़ने पर ही जीवन में सम्भला जा सकता है।
इससे पुर्व पूज्य आचार्य श्री के पाद प्रक्षालन का सौभाग्य श्रीपाल जैन भानपुर,विनोद जैन हरिद्वार को मिला। शास्त्र भेंट अविनाशजी और डॉ जितेंद्र जैन ने किया। इसके उपरांत आचार्य श्री की पूजन का कार्यक्रम भक्ति पुर्वक संपन्न हुआ।
आचार्य श्री की आहारचर्या का सौभाग्य प्रेमचन्द जी सुनील जैन, मनोज जैन जखोरा बालों के परिवार को प्राप्त हुआ। चौके में प्रदीप कुट्टू को भी आहार देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
श्री 1008 मज्जिनेन्द्र जिनबिम्ब पंचकल्याणक महोत्सव समिति भानपुर, भोपाल
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अपना देश अपनी भाषा
इंडिया हटाओ, भारत लाओ। – आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी
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