📣 "अमृत वाणी"
भोपाल। आज रविवार 27 नवंबर को भानपुर में आयोजित रविवारीय धर्मसभा सचिन जैन के मंगलाचरण से प्रारंभ हुई।
इस अवसर पर परम पूज्य आचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज जी ने कहा कि जब भक्त ह्रदय से गुरु से कुछ मांगते हैं तो देना तो लाजमी है। किसान या माली कोई पौधा लगाता है तो उसकी देखरेख करता है और जब बो पल्लवित हो जाता है तो उसकी रौनक बढ़ जाती है। जब बो बड़ा होता है तो अपनी जड़ मजबूत कर लेता है। कुछ पत्ते उसके पीले हो जाते हैं और नए पत्ते आना प्रारम्भ हो जाता है, ये उसका नैसर्गिक स्वरुप होता है। ये प्रकृति का नियम है की विकास के क्रम में फल लगना शुरू हो जाते हैं और उसकी शाखा और उपशाखाएँ फैलती जाती हैं और चने का पेड़ चारों तरफ हो जाता है। ऐंसे ही जीवन का विकास क्रम से ही होता है, विस्तार धीरे धीरे होता है।
उन्होंने कहा कि अपनी छाया दिन में दो बार दिशा बदलती है ऐंसे ही लक्ष्मी होती है। जो लक्ष्मी की तरफ जाता है लक्ष्मी दूर भागती है। वर्तमान परिवेश इसका उदाहरण है। जहाँ अनुशासन होता है बहा लक्ष्मी का नहीं सरस्वती का शासन होता है। जब बुद्धि ठीक होती है तो लक्ष्मी अनुचर बन जाती है इसलिए बुद्धि को जाग्रत रखिये। लक्ष्मी के पिछलग्गू नहीं बनना बल्कि सरस्वती की शरण को स्वीकार करना है। शुभ का अर्थ है सरश्वती जो पहले दरवाजे पर लिखी जाती है, शुभ के आने पर ही लाभ पीछे आता है। लक्ष्मी को सहेजने की जरूरत नहीं है बल्कि बुद्धि को सहेजने की जरूरत है क्योंकि अनंत धन बुद्धि को ही कहा गया है।
उन्होंने कहा कि जो काम में मगन रहता है निंद्रा भी उससे दूर रहती है जो बिषयों में खो जाता है उसकी जिंदगी नश्वर होती है और जो आत्मा में खो जाता है उसकी जिंदगी अविनश्वर हो जाती है। आप सभी इस अनुष्ठान से पूर्ण रूप से जुड़ें तो आपको सुख की अनुभूति अवश्य ही हो जायेगी। सर्दी उन्हें ही लगती है जिन्हें बुढ़ापे का डर सताता है।
आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चित्र का अनावरण भानपुर कमेटी के अध्य्क्ष संतोष जैन,सौधर्म इंद्र अशोक जैन, रमेश, धर्मचंद, बालचंद, वीरेंद्र, आदि ने किया।
पंचकल्याणक समिति के पंकज सुपारी, राकेश ओएसडी, प्रमोद जैन हिमांशु, अरविन्द सुपारी, मनोज बांगा, आदीश जैन, पवन सुपर, पंकज इंजीनियर, कमल हाथिशाह, संजय मिलेट्री, पंकज प्रधान,अंशुल जैन, अमित टडैया, राजकुमार जैन चौक, मंदिरों के अध्यक्षों आदि ने मंगल दीप प्रज्ज्वलित किया और श्रीफल समर्पित किया। शास्त्र भेंट नेमीचन्द सौरभ जैन पनागर ने किया।
इस अवसर पर प्रतिष्ठाचार्य ब्रह्मचारी विनय भैया ने कहा कि पुण्य की बेला है जो बड़े बाबा की प्रतिष्ठा की जा रही है जो इंद्र इन्द्राणी बन रहे हैं वे अपने भावों को निर्मल बना लें। 29 नवंबर से घट्यात्रा और ध्वजारोहण के माध्यम से ये महामहोत्सव प्रारम्भ हो रहा है। सभी की सहभागिता इसमें हो रही है ये महत्वपूर्ण है। ऐंसे गुरु का सानिध्य विरले लोगों को ही मिलता है।
इस अवसर पर पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के शिष्य मुनि श्री निर्दोष सागर जी महाराज ने कहा कि जो गुरुभक्ति करते हैं पागलों की तरह उन पर कृपा बरसती है बादलों की तरह। आज भोपाल बालों पर गुरुवर की कृपा बरष रही है। 6 माह पूर्व साक्षात भगवान भोपाल में आकर विराजमान हो गए। गुरु की महिमा अलौकिक होती है। ये पंचकल्याणक बहुत दुर्लभ होता है जो आपको सहज में ही मिल रहा है। जब तीर्थंकर माता के गर्भ में आते हैं तो 6 माह पुर्व ही पूरे राज्य में रत्नों की बर्षा होती है। ये भगवान् के पुण्य की महिमा ही होती है जो समूचा ब्रह्माण्ड खुशिओं में सरावोर हो जाता है। अनहद बाध यंत्र चारों तरफ बजने लगते हैं और संगीत की स्वरलहरियों से वातावरण पवित्र हो जाता है। भगवन के बालक रूप देखकर सौधर्म सहित सभी इंद्र आल्हादित हो जाते हैं। पाषाण से परमात्मा कैंसे बनाए जाते हैं ये पंचकल्याणक में देखने को मिलेगा। जैंसे सूर्य बिना राग द्वेष के सबको ऊर्जा देता है बैसे ही वीतरागी संत भी सभी को ज्ञान का प्रकाश देते हैं। बैर से बैर नहीं मिटता बल्कि क्षमा से ही बैर को मिटाया जा सकता है।
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भोपाल। आज रविवार 27 नवंबर को भानपुर में आयोजित रविवारीय धर्मसभा सचिन जैन के मंगलाचरण से प्रारंभ हुई।
इस अवसर पर परम पूज्य आचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज जी ने कहा कि जब भक्त ह्रदय से गुरु से कुछ मांगते हैं तो देना तो लाजमी है। किसान या माली कोई पौधा लगाता है तो उसकी देखरेख करता है और जब बो पल्लवित हो जाता है तो उसकी रौनक बढ़ जाती है। जब बो बड़ा होता है तो अपनी जड़ मजबूत कर लेता है। कुछ पत्ते उसके पीले हो जाते हैं और नए पत्ते आना प्रारम्भ हो जाता है, ये उसका नैसर्गिक स्वरुप होता है। ये प्रकृति का नियम है की विकास के क्रम में फल लगना शुरू हो जाते हैं और उसकी शाखा और उपशाखाएँ फैलती जाती हैं और चने का पेड़ चारों तरफ हो जाता है। ऐंसे ही जीवन का विकास क्रम से ही होता है, विस्तार धीरे धीरे होता है।
उन्होंने कहा कि अपनी छाया दिन में दो बार दिशा बदलती है ऐंसे ही लक्ष्मी होती है। जो लक्ष्मी की तरफ जाता है लक्ष्मी दूर भागती है। वर्तमान परिवेश इसका उदाहरण है। जहाँ अनुशासन होता है बहा लक्ष्मी का नहीं सरस्वती का शासन होता है। जब बुद्धि ठीक होती है तो लक्ष्मी अनुचर बन जाती है इसलिए बुद्धि को जाग्रत रखिये। लक्ष्मी के पिछलग्गू नहीं बनना बल्कि सरस्वती की शरण को स्वीकार करना है। शुभ का अर्थ है सरश्वती जो पहले दरवाजे पर लिखी जाती है, शुभ के आने पर ही लाभ पीछे आता है। लक्ष्मी को सहेजने की जरूरत नहीं है बल्कि बुद्धि को सहेजने की जरूरत है क्योंकि अनंत धन बुद्धि को ही कहा गया है।
उन्होंने कहा कि जो काम में मगन रहता है निंद्रा भी उससे दूर रहती है जो बिषयों में खो जाता है उसकी जिंदगी नश्वर होती है और जो आत्मा में खो जाता है उसकी जिंदगी अविनश्वर हो जाती है। आप सभी इस अनुष्ठान से पूर्ण रूप से जुड़ें तो आपको सुख की अनुभूति अवश्य ही हो जायेगी। सर्दी उन्हें ही लगती है जिन्हें बुढ़ापे का डर सताता है।
पंचकल्याणक समिति के पंकज सुपारी, राकेश ओएसडी, प्रमोद जैन हिमांशु, अरविन्द सुपारी, मनोज बांगा, आदीश जैन, पवन सुपर, पंकज इंजीनियर, कमल हाथिशाह, संजय मिलेट्री, पंकज प्रधान,अंशुल जैन, अमित टडैया, राजकुमार जैन चौक, मंदिरों के अध्यक्षों आदि ने मंगल दीप प्रज्ज्वलित किया और श्रीफल समर्पित किया। शास्त्र भेंट नेमीचन्द सौरभ जैन पनागर ने किया।
इस अवसर पर प्रतिष्ठाचार्य ब्रह्मचारी विनय भैया ने कहा कि पुण्य की बेला है जो बड़े बाबा की प्रतिष्ठा की जा रही है जो इंद्र इन्द्राणी बन रहे हैं वे अपने भावों को निर्मल बना लें। 29 नवंबर से घट्यात्रा और ध्वजारोहण के माध्यम से ये महामहोत्सव प्रारम्भ हो रहा है। सभी की सहभागिता इसमें हो रही है ये महत्वपूर्ण है। ऐंसे गुरु का सानिध्य विरले लोगों को ही मिलता है।
इस अवसर पर पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के शिष्य मुनि श्री निर्दोष सागर जी महाराज ने कहा कि जो गुरुभक्ति करते हैं पागलों की तरह उन पर कृपा बरसती है बादलों की तरह। आज भोपाल बालों पर गुरुवर की कृपा बरष रही है। 6 माह पूर्व साक्षात भगवान भोपाल में आकर विराजमान हो गए। गुरु की महिमा अलौकिक होती है। ये पंचकल्याणक बहुत दुर्लभ होता है जो आपको सहज में ही मिल रहा है। जब तीर्थंकर माता के गर्भ में आते हैं तो 6 माह पुर्व ही पूरे राज्य में रत्नों की बर्षा होती है। ये भगवान् के पुण्य की महिमा ही होती है जो समूचा ब्रह्माण्ड खुशिओं में सरावोर हो जाता है। अनहद बाध यंत्र चारों तरफ बजने लगते हैं और संगीत की स्वरलहरियों से वातावरण पवित्र हो जाता है। भगवन के बालक रूप देखकर सौधर्म सहित सभी इंद्र आल्हादित हो जाते हैं। पाषाण से परमात्मा कैंसे बनाए जाते हैं ये पंचकल्याणक में देखने को मिलेगा। जैंसे सूर्य बिना राग द्वेष के सबको ऊर्जा देता है बैसे ही वीतरागी संत भी सभी को ज्ञान का प्रकाश देते हैं। बैर से बैर नहीं मिटता बल्कि क्षमा से ही बैर को मिटाया जा सकता है।
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