रत्नकरंड श्रावकाचार ग्रन्थ आचार, विचार, आहार, और व्यवहार I - परम पूज्य आचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज
"अमृत वाणी"
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भोपाल। आज 23 अक्टूबर को रविवारीय धर्मसभा जैन मंदिर हबीबगंज के पांडाल में संपन्न हुई। रत्नकरंड श्रावकाचार ग्रन्थ की व्याख्या करते हुए परम पूज्य आचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज जी ने कहा कि श्रावक को धर्म के दायरे में रहकर ही धर्म के मूल सिद्धांतों का अक्षरशः पालन करना चाहिए। श्रावकों को जीवन में आचार, विचार, आहार, और व्यवहार का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
उन्होंने कहा कि दृष्टि का उपयोग सही नहीं कर पा रहे हैं। अपने द्रष्टीकोण को सही दिशा में ले जाना है तो उसका उपयोग सही करना होगा। गुरुवर ने कहा कि पानी में रहने बाला प्राणी जितनी आवश्यकता हो उतना ही पानी लेता है पूरा नहीं पी जाता है परंतु आप जरूरत से ज्यादा संग्रह करते हो चाहे बो पानी हो या धन हो। अभिमान करना अनावश्यक है परंतु आपने उसे आवश्यक बना लिया है। लोग कमजोर के सामने मूंछ पर ताव देते हैं और बजनदार के सामने चुप रहते हैं। जो धर्म के सिद्धांत को समझता है बो अभिमान से दूर रहता है। मोह को जीता जा सकता है परंतु क्रम से ही जीता जा सकता है। 18 दोषों से रहित जो आप्त है बो इष्ट हैं। परम में जो उत्कृष्ट हैं बे परमेष्टि होते हैं । ज्ञान तो हम लोगों के पास भी है परंतु अन्धकार के साथ है अथार्थ दिया तले अन्धेरा है। हमारा ज्ञान सामान्य है, अधूरा है। हरेक व्यक्ति के मन में भय व्याप्त होता है, भय रखने से भय कभी छूटता नहीं है। मृत्यु का भय सभी में व्याप्त है परंतु मृत्यु होती किसकी है ये नहीं जानते। जो सैनिक होता है बो कभी पीछे नहीं हट सकता, राजा और मंत्री एक कदम पीछे हट सकते हैं। सैनिक के सामने मृत्यु भी खड़ी हो तो बो मृत्यु से नहीं डरता है। जो व्यक्ति जीवन और मृत्यु को समझ लेता है बो स्वांस और विश्वास से परिपूर्ण रहता है। स्वांस के बिना अनेक तपस्वी लंबे समय तक रह सकते हैं क्योंकि उनके भीतर विश्वास होता है।
उन्होंने कहा कि जो अपने स्वागत की चिंता करते हैं बे स्वागत के योग्य होते ही नहीं हैं। स्वागत तो सिर्फ उनका होता है जो सत्कार और पुरष्कार की भावना से दूर रहते हैं। मान कषाय ही पागलपन की ओर ले जाती है। मेरा कोई सत्कार नहीं हुआ, मेरा कोई कीर्तन ही नहीं हुआ बस इसी होड़ में सब लगे हैं और मान कषाय की पुष्टि न होने के कारण विचलित हो जाते हैं। जिसको ये ज्ञात हो जाता है कि सत्कार और पुरुष्कार क्षणिक भर के होते हैं और आत्मा चिर काल तक सम्मानित होती है उसके सामने दुनिया नतमस्तक हो जाती है। नदी के किनारे या जंगल में तपस्या की फ़ोटो निकलवाने से तप और त्याग नहीं होता है। तप तो अंतरंग की प्रक्रिया है जो भीतर ही भीतर चलती है। ये रहस्य जिसके समझ आ जाता है बो रहस्य की गुत्थी को सुलझा लेता है। अपने पीछे या आगे उपाधि लगवाना ये भी एक प्रकार से भूख है जो अनादिकाल से चली आ रही है। उपाधि के चक्कर में अपना मूल नाम भी लोग भुला देते हैं। अपने भीतर की कमियों को ढूंढना प्रारम्भ कर दो तो साधना सध जायेगी। स्वार्थ त्याग का नाम ही परमार्थ होता है। आदर्श मार्ग को बही प्रशस्त कर पाता है जो पहले स्वयं आदर्शों की स्थापना करता है। जो सदमार्ग पर चल रहा है यदि उसके पीछे लग जाओगे तो दुनिया भी तुम्हारे पीछे पीछे आएगी।
आज भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय द्वारा सम्मानित पुस्तक "संपूर्ण योग विद्या" के नवीन संस्करण का विमोचन आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के समक्ष पूर्व कलेक्टर, नगरीय एवं आवास विभाग में उपसचिव श्री राजीव शर्मा जी ने किया। आचार्य श्री ने श्री शर्मा को आशीष प्रदान किया। उक्त पुस्तक योगाचार्य श्री राजीव जैन लायल ने लिखी है।
भोपाल चातुर्मास अपडेट
【न्याय सिद्धान्त के मर्मज्ञ विद्वान् के मार्गदर्शन के लिए पहुंचे अनेक "न्यायाधीशगण"】
पुज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के दर्शन और मार्गदर्शन के लिए आज लगभग 40 न्यायधीश गण जैन मंदिर हबीबगंज पहुंचे और आचार्यश्री को श्रीफल समर्पित कर उनका मार्गदर्शन और आशीर्वाद ग्रहण किया।
इस अवसर पर गुरुवर ने कहा कि भारत की न्यायपालिका अन्य राष्ट्रों के मुकाबले बहुत सशक्त है फिर भी लाखों लोग न्याय से वंचित हैं क्योंकि जिस भाषा में कार्यप्राणाली चल रही है उसका ज्ञान नहीं है, स्थानीय भाषाओं में कार्य होगा तो न्याय सही होगा। गुरुवर ने कहा कि न्याय का फैसला सुनाते समय अपराधी और अपराध की परिस्थिति का भी अध्ययन आपको करना चाहिए। साथ ही अपराधी को एक प्रायश्चित का मौका अवश्य दिया जाना चाहिए।
इस अवसर पर श्री शैलेन्द्र शुक्ला जिला और सत्र न्यायाधीश, श्री डी के पालीवाल, काशीनाथ सिंह, रामकुमार चौबे, भू भास्कर यादव अनेक न्यायाधीश और अधिवक्ता हरीश मेहता और उनके परिजन भी साथ थे।
आज इंडियन बैंक के चैयरमैन एम के जैन, पंजाब एन्ड सिंध बैंक के चैयरमैन महेंद्र जैन ने भी गुरुवर का आशीष ग्रहण किया।
अपना देश अपनी भाषा
इंडिया हटाओ, भारत लाओ। – आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी
शब्द संचयन
पंकज प्रधान
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