"अमृत वाणी"
गुरुवर परम पूज्य आचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज जी ने कहा की आप लोग बकताओं को एकाग्रता से सुन रहे थे में भी एक एक श्रोता बनकर सुन रहा था । मंथन में ही जो देखते हैं बो गायब हो जाता है जो नहीं दिखता बो उभर कर सामने आता है । भावों की कोई भाषा नहीं होती है बो तो तैरते हुए ही दिखाई देते हैं । अपने भावों की तरंगें व्यक्त करते रहना चाइये ।
गुरुवर ने कहा कि कल प्रधानमंत्री जी आये थे तो भारत की बात हुई। कोई कितना भी बड़ा कलाकार हो यदि पूर्ण निष्ठां से कला की अभिव्यक्ति नहीं करेगा तो सार्थकता दिखाई नहीं देगी। भाषा में उलझकर कभी कभी भाव पिछड़ जाते हैं । केंद्र बिंदु की स्थापना करके एक रेखा खींची जाती है तो चारों तरफ हरेक दिशा में केंद्र को छूतेहुए तभी चतुर्भुज बनता है। केंद्र से विचलित न हों तो सम्पूर्ण व्यास परिलक्षित होता है । द्रष्टीकोण से ही व्यवहार में सरलता आती है। जीवन को सम्पूर्ण बनाना चाहते हो तो उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से ऊपर उठकर केंद्र तक दृष्टि जाना चाहिए। परिधि में सूर्य का बिम्ब तभी दिखाई देता है जब सभी दिशाओं में एकरूपता होती है । शब्दों से ही उपजती है जीवन की विविध रूपताएं। आज भारत के प्राचीन दृष्टिकोण को समझने और समझाने की जरूरत है। जो वीणा का संगीत होता था आज लुप्त हो गया है । शुभ यानि सरश्वती और लाभ यानि लक्ष्मी ये दोनों एक दुसरे की पर्याय हैं परंतु आज सरश्वती का लॉप करके लक्ष्मी के पीछे दौड़ रहे हैं । सरश्वती को मन्त्र बनाकर ही महामंत्र का रूप दिया जाता है। यंत्र और तंत्र सब बेकार हैं मन्त्र के सामने। पीछे भी देखो मगर पिछलग्गू मत बनो। परदेश की यात्रा छोड़कर अपने देश में लौटने पर ही भारतदेश का नवनिर्माण हो सकता है। लाभ के पीछे दौड़कर भला नहीं हो सकता। अंतरंग की लक्ष्मी को पाना है तो बाहर देखना बंद करो भीतर जाओ और तर जाओ। जैंसे रंग का चश्मा लगाओगे बैंसा ही दृश्य दिखाई देता है। आज अंतरराष्ट्रीय होने की जरूरत नहीं है बल्कि अन्तर में राष्ट्रीय भावनाओं को जाग्रत करने की जरूरत है । मंथन से चिंतन उपजता है और फिर नवनीत की तरह मुलायम परिणाम निकलते हैं । प्राचीन भारत की संस्कृति का मंथन करे तभी शुभ परिणाम दिखाई देंगे । बिदेशी संस्कृति से भारत की प्रतिभाओं का दोहन हो रहा है ,हमारी संस्कृति का ज्ञान कराने पर ही प्रतिभाएं उभर कर आएँगी ।
आचार्यश्री की आहारचर्या का सौभाग्य वरिष्ठ IAS अधिकारी एवं आचार्य श्री के अनन्य भक्त श्री सुभाष जैन IAS के परिवार को प्राप्त हुआ।
अपना देश अपनी भाषा
इंडिया हटाओ, भारत लाओ। – आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी
शब्द संचयन
पंकज प्रधान
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