"अमृत वाणी"
भोपाल। आज 25 अक्टूबर को जैन मंदिर हबीबगंज में आयोजित धर्मसभा में परम पूज्य आचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज जी ने कहा कि धार्मिक अनुष्ठान के लिए द्रव्य काल के साथ साथ क्षेत्र भी अपेक्षित है। निंद्रा के समय सम्यकदर्शन की प्राप्ति नहीं हो सकती हाँ सम्यक दर्शन के बाद निंद्रा अवश्य आ सकती है। निंद्रा के समय हम बुद्धिपूर्वक किसी पर पदार्थ को पहचान नहीं पाते । इसलिए हमारा प्रयास बिफल हो जाता है । जितनी निंद्रा आवश्यक है उतनी ही लेना चाहिए।
उन्होंने कहा कि जब दिनकर यानि सूर्य का आभाव हो तो भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए क्योंकि पाचन सम्भव नहीं होता और शाम को भोजन भी हल्का लेना चाहिए। भोजन गरिष्ट होगा तो निंद्रा ज्यादा आएगी और फिर साधना नहीं हो सकती। पशु पक्षी भी रात में नहीं खाते केवल रात में जुगाली करते हैं और भोजन को सप्त तत्व में बदल देते हैं और दिन में भोजन करने बाले पशु मनुष्य से अधिक शक्तिशाली होते हैं।
उन्होंने कहा कि साधक की सामायिक में यदि जाग्रति नहीं है तो व्रतों का संसोधन नहीं हो पायेगा। व्रतों में निर्दोषी करण होना चाहिए उसी से कर्मों की निर्जरा होती है।
उन्होंने आगे कहा कि सामायिक तभी संभव है जब आप मन रुपी घोड़े पर लगाम लगा सको क्योंकि मन सरपट दौड़ता है जिसे नियंत्रित करने के लिए विशेष प्रकार के तप की आवश्यकता होती है।
आज की आचार्य श्री की आहारचर्या का सौभाग्य साधू सेवा संघ के सदस्यों को प्राप्त हुआ। संघ के उमेश भज्जू, रीतेश जैन, प्रफुल्ल चौधरी जैन, सचिन नमकीन (सुपुत्र सुनील जैन संयोजक पार्श्वनाथ तीर्थ धाम समसगढ़) ,सौरभ जैन, नीतेश जैन मामा, राहुल तारई, ने नवधा भक्ति से गुरुवर का पड़गाहन किया। साधू सेवा संघ के कार्यकर्ता पिछले समय से पूरी आहार व्यवस्था संभाले हुए हैं। इन्होंने मंदिर में 15 प्रतिमाओं की स्थापना की घोषणा की।
अपना देश अपनी भाषा
इंडिया हटाओ, भारत लाओ। – आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी
शब्द संचयन
पंकज प्रधान
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