शून्य का अविष्कार हमारे आचार्यों ने किया है, शून्य की कीमत तभी होती है जब उसके साथ कोई अंक लगाया जाता है।। परम पूज्य आचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज
"अमृत वाणी"
भोपाल। विजयादशमी के शुभ अवसर पर आज पूज्य आचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज जी ने कहा कि पूर्व के कर्म जो बंधे हैं उसमें पुरुषार्थ का योगदान होता है। माचिस की तीली में एक तरफ बारूद लगाया जाता है, उसमें से चिंगारी निकलती है। ऐंसे ही जो कर्म हमने आत्मा पर चिपकाए हैं बो बाद में परिणाम के रूप में परिलक्षित होते हैं। माचिस के आजु बाजू में लगे मशाले में यदि पानी लग जाय तो फिर तीली नहीं जलती है। बारिश में पानी से बचने पर ही बो काम करती है। ऐंसे ही प्रमाद के कारण कर्म के उदय में लापरबाही करते हैं तो कर्म विपरीत हो जाते हैं। आवश्यकता के अनुसार कर्मों का उपयोग करना चाहिए ताकि समय पर कर्म विपरीत न हों। जब बच्चों को विद्यालय जाने का भय होता है तो बो समय पर जाग जाते हैं नहीं तो प्रमाद में सोते रहते हैं। ऐंसे ही पुरुषार्थ को जागृत रखेंगे तो कर्मों के विद्यालय तक पहुँच पाएंगे। जीवन में आग को जलाये रखिये तभी शुभ परिणाम मिलेंगे। आग यदि भीतर ही भीतर जलती रहेगी तो कोई भी अनुष्ठान सफल हो सकेगा।
उन्होंने कहा कि भीतर की आग को विकास की गति प्रदान करेंगे, पुरुषार्थ करेंगे तो सही दिशा मिलती रहेगी। दादाजी की गोदी में बालक बैठ था भीतर से आबाज आई तो बालक भीतर से खाने की बस्तु लाया और खुद खाया उत्साह के साथ तो दादाजी को दिया उन्होंने आधी बस्तु बालक को दी परंतु बालक ने देखा दादाजी मेरी तरह उत्साह पूर्वक नहीं खा रहे क्योंकि उनके भीतर का उत्साह संसार के प्रपंचों में समाप्त हो गया था। ऐंसे ही आप बिषयों में रच पच कर जीवन के अनमोल क्षणों को व्यर्थ गंबाते जा रहे हो जबकि सही दिशा में पुरुषार्थ करेंगे तो उत्साह चिरकाल तक बना रहेगा। तृष्णा का जहर जब चढ़ता है तो भवों भवों तक नहीं उतरता है इसलिए तृष्णा की गहरी खाई में जाने के पूर्व संभालना जरूरी है। जीवन में समय समय पर गृहस्थ, वानप्रस्थ आश्रम की व्यवस्था बताई गई है। कर्तव्यों का पालन करते चले जाएंगे तो गृहस्थ आश्रम का जीवन शांति से निकलजायेगा और फिर वानप्रस्थ की और निराकुल भाव से बढ़ सकेंगे नहीं तो बृद्ध आश्रम की और जाना पडेगा।
उन्होंने कहा कि शून्य का अविष्कार हमारे आचार्यों ने किया है, शून्य की कीमत तभी होती है जब उसके साथ कोई अंक लगाया जाता है।
इसके उपरांत आचार्य श्री के आहार का सौभाग्य दिगम्बर जैन विद्यालय समिति के अध्यक्ष और मुनिसंघ सेवा समिति के संयोजक और गुरुवर के अनन्य भक्त अरविन्द सुपारी, प्रकाश जैन, अशोक जैन, गौरव बल्ले, अनिकेत और परिवार के सभी सदस्यों को प्राप्त हुआ।
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अपना देश अपनी भाषा
इंडिया हटाओ, भारत लाओ। – आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी
शब्द संचयन
पंकज प्रधान
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