भारत ऐसा वटवृक्ष जिसकी जड़े बहुत गहरी हैं- आचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज जी



भोपाल। विचारों को साकार किया जा रहा है ऐंसा लगता है हम सक्रीय होते जा रहे हैं विचारों के पैर नहीं होते परंतु जो संयोग होता है तो मूक भी बोलने लग जाता है । उक्त उदगार पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने आज 20 सितम्बर को श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर हबीबगंज में प्रतिभा स्थली के लगभग 1200 छात्राओं और दीदीयों की बिशेष उपस्थिति में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किये।

       उन्होंने कहा कि  पंगु व्यक्ति भी चलने लगता है , बुद्धिहीन व्यक्ति की बुद्धि भी चलने लग जाती है ,लोग संगीत की स्वर लहरियों में तल्लीन हो जाते हैं जब सम्यक दर्शन, ज्ञान, चारित्र की पूजन होती है। गुरुकुल परंपरा भारत की मूल संस्कृति का एक हिस्सा रहा है और पुनः इस संस्कृति को जागृत करने के लिए मंगल दीप प्रज्ज्वलित करने की आवश्यकता है।  सूरज आसमान में है और नीचे टिमटिमाता दीपक है । बहुत सारे विचारों को सपनों को साकार करने के लिए पुरुषार्थ रुपी दीपक जल दिया जाय तो सूरज की तरह तेज उत्पन्न हो सकता है।प्रकृति में गति पुरुष के माध्यम से आती है प्रकृति को खिलौना समझकर उससे खेलने का उपक्रम किया जा रहा है जिसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। हम तोते की तरह रटने का प्रयास कर रहे हैं जबकि ज्ञान रटने से नहीं बल्कि अध्ययन से जाग्रत होता है। हम अपनी भूलों को भूलकर यदि सही उपक्रम की और दृष्टि करेंगे तो सही दिशा की और अग्रसर हो सकेंगे।

       उन्होंने कहा कि भारत तो भारत के रूप में विद्यमान है उसे उसके वास्तविक स्वरुप में उद्घाटित करने की आवश्यकता है। अपने विचारों को संयोजित करके हम आपदा विपदाओं से मुक्त हो सकते हैं लेकिन श्रम के आभाव में ऐंसा नहीं हो पा रहा है, हम श्रमिक न बनकर आलस्य का पुतला बने रहे तो रुग्णता को प्राप्त होते गए। भारत एक ऐंसा बृक्ष है जिसकी जड़ें बहुत गहरी हैं परंतु विदेशी संस्कृति के रोपण से इस बृक्ष की सूरत हमने बिगाड़ ली है। आज प्राचीन भारत की कृषि लुप्तप्रायः हो रही है क्योंकि विदेशी यूरिया ने उर्वरा शक्ति को कमजोर बना दिया है। अलंकार और आभूषण रहित और नवरंग विहीन संस्कृति हमने बना ली है, हम विदेशी नक़ल के आदी बनते जा रहे हैं। हम जो बोल रहे हैं बह लय विहीन होता जा रहा है। भाबना बनाके और विश्वास को सुदृढ़ बनाने पर हम पुनः प्राचीन वैभव को प्राप्त कर सकते हैं बस अंतिम पंक्ति के व्यक्ति तक हमें इस विचार को पहुँचाने की जरूरत है। जब जीव अजीव से मिल जाता है तो सात शत्रु आ जाते हैं और आत्मतत्व कहीं खो जाता है। जीव से जीव मिले और दीप से दीप मिले तो विकास रुपी प्रकाश अवश्य फैलेगा, मोक्ष तत्व तक पहुँचने के लिए धर्म के बीज को सुरक्षित करना पड़ता है तब बट बृक्ष खड़ा होता है और मोक्ष फल की प्राप्ति होती है। बिश्राम करते रहेंगे तो राम से वंचित रहेंगे क्योंकि आराम तो हराम बताया गया है। बिश्राम को तजकर काम (पुरुषार्थ) करेंगे तो जरूर राम से साक्षात्कार होगा।

      इसके पूर्व पूर्ण भक्ति भावों से उपस्थित छात्राओं , दीदियों और श्रावक् जनों ने आचार्य श्री की पूजन संपन्न की। इसमें नाट्य रूप में पूजन का उपक्रम किया गया जिसमें बिभिन्न भेषभूषा जैंसे मंदिर , जिनवाणी आदि का रूप धरकर बच्चों ने बिशेष प्रस्तुतियां दी जिसकी करतल ध्वनियों से सभी ने अनुमोदना की।
     इसके बाद आचार्य श्री की आहारचर्या का सौभाग्य मुनि श्री निर्णय सागर जी के  गृहस्थ जीवन के श्री भूपेंद्र जी सुनील जी जैन मुरारिया सिरोंज बालों के पूरे परिवार को प्राप्त हुआ।


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इंडिया हटाओ, भारत लाओ। – आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज !


【शब्द संचयन】  
    पंकज प्रधान

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