भोपाल । पर्युषण पर्व का रविवार आज एक विशेष उपलब्धि के साथ प्रारम्भ हुआ जिसमें पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के सानिध्य में सुभाष स्कूल पांडाल में राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षा के विद्यार्थियों का "राष्ट्रीय हिंदी महोत्सव " कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें विद्या भारती के विद्यार्थी भी विशेष रूप से उपस्थित हुए । "तूर्यनाद" कार्यक्रम जो मैनिट में दो दिन से चल रहा है उसी की एक कड़ी के रूप में ये अभूतपूर्व आयोजन किया गया है । पूज्य मुनि श्री निरोग सागरजी महाराज ने तत्वार्थ सूत्र का वाचन किया । मंगलाचरण मैनिट की छात्राओं ने किया जिसमें स्वर्णमयी सशक्त भारत का चित्रण गीत के माध्यम से किया । पूज्य आचार्य गुरु नाम गुरु के चित्र का अनावरण और दीप प्रज्ज्वलन पर्यटन और संस्कृति मंत्री सुरेन्द्र पटवा , आर एस एस के श्री अरुण जैन , रीवा की महापौर ममता गुप्ता , सुरेश जी , अशोक पाटनी , रतनलाल जी बैनाड़ा , राजा जी सूरत , पंकज जी पारस चैनल , प्रमोद हिमांशु , राकेश osd ,विनोद mpt, नितिन नांदगांवकर , राजपूत जी मैनिट, ने किया । पाद प्रक्षालन अशोक पाटनी जी परिवार , राजा जी सूरत , पंकज जैन ने किया । शास्त्र भेंट मलय जैन , अरुण जैन , निलय जैन , तरुण काला आदि ने किया । मैनिट के प्राध्यापकों ने भी श्रीफल भेंट किया और उनका सम्मान चातुर्मास समिति की और से किया गया । इस अवसर पर श्री सुरेन्द्र पटवा जी ने कहा की संस्कृति और सभ्यता रीति रिवाज , परम्पराएं इन्हें सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए प्रदेश के युवाओं को अपने कन्धों पर बागडोर संभालना चाहिए । हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है इसे मजबूत बनाने के लिए सरकार के साथ सभी को एक जुट होकर कार्य करना चाहिए । इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारकअरुण जैन ने कहा की आज के ही दिन स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में हिंदी का शंखनाद किया था । तूर्यनाद के बिषय में सविता दीक्षित ने बताया की भाषा संस्कृति भिन्न भिन्न है परंतु हिंदी इन्हें एक सूत्र में बाधती है । तूर्यनाद राष्ट्रभाषा के लिए संबर्धित करने के लिए कार्य कर रही है ।इस अवसर पर मैनिट के विद्यार्थियों ने नुक्कड़ नाटक के माध्यम से नारी पर होने बाले अत्याचार का चित्रण किया । कार्यक्रम में सर्वश्री नरेंद्र वंदना , मनोज जैन एम् के भारत , राजेश कोयला ,कमल अजमेरा हुकुमचंद खलीचुनि, पंकज सुपारी , देवेन्द्र रूचि , सुनील जैन 501 , आदित्य मनिया , विनोद चौधरी अनुपम , शैलेन्द्र जैन , मुकेश शीतल , रोहित सुगंधिलाल, अमित टडैया , प्रदीप मोदी , संजीव गेंहू, पुष्पेन्द्र जैन , शैलेश प्रधान , सुकमल जैन , डॉ नरेंद्र जैन , विमल भंडारी, अंशुल प्रवक्ता , सचिन rendue, राजीव गेंहू, विकास विक्की , सहित अनेक कार्यकर्त्ता उपस्थित थे ।
इस अवसर पर पूज्य आचार्य श्री ने कहा की आजका रविवार युग और धर्म का है युग आगे है या धर्म ये हमें जानना है । पहल धर्म का युग था आज युग धर्म है । धर्म का अर्थ है आत्मा का स्वाभाव ।। उत्साह और गीत काम नहीं करते बल्कि पुरुषार्थ काम करता है । पुरुषार्थ के आभाव में ही गीत गाये जा रहे हैं बदलाब के परंतु बदलाव नहीं आ पा रहा है । दाम्पत्य जीवन दोनों का होता है और नर नारी दोनों को मिलकर चलना होता है । पुरुषार्थ करने से ही तस्वीर बदलती है ,पसीना तब आता है तो उसमें मेहनत होती है । युग निकलते जा रहे हैं और हम केवल नीतियां बनाने में ही लगे हैं हिंदी राष्ट्रभाषा मजबूत है परंतु उसे कमजोर कर रहे हैं । भाषा महत्वपूर्ण नहीं होती बल्कि भाव और संस्कृति महत्वपूर्ण होती है ,जब तक संस्कृति के भावों के साथ कुठाराघात होता रहेगा तब तक राष्ट्रभाषा को मजबूत नहीं बनाया जा सकता । दूसरी भाषा के माध्यम से भावों की अभिव्यक्ति करने से विकास का मार्ग कभी प्रशस्त नहीं हो सकता है , आज अंग्रेजी को हमने ओढ़ लिया है इसी बजह से हिंदी का एक दिन का दिवस या महोत्सव मानाने से कुछ होने वाला नहीं है । हिंशा को रोकने के लिए वीरता दिखाना यही सच्ची अहिंसा होती है ,कायरता का नाम अहिंसा है । जब तक नेताओं को धक्का नहीं लगाओगे तब तक देश की गाडी आगे नहीं बढ़ सकती है । यदि आप पुरुष हो तो पुरुषार्थ करो क्योंकि पुरुषारथ ही पुरुष का असली गहना है । जल ही जीवन है और आँखों के जल को मोती बना लो तो भारत की मिटटी भी सोना बन जाती है परंतु पुरुषार्थ करो तभी रक्त का संचार होगा और भारत मजबूत बनेगा । उन्होंने कहा की राष्ट्र का धन सामाजिक धन है और असली धन है भारत की भूमि यदि उसकी रक्षा में लग जाओगे तो स्वर्णमयी युग की बापसी हो जायेगी । ताश के बाबन के पत्ते होते हैं सबका मूल्य होता है जोकर का मूल्य नहीं होता परंतु बड़े पत्तों से जोकर को मिला दो तो उसकी भी कीमत हो जाती है । भारत का अर्थ जोकर है परंतु उसे बजनदार के साथ मिला लो उसकी भी कीमत हो जायेगी । सूर्य के आभाव में भी छोटा सा दीपक काम करता है । भारत को मजबूत बनाना है तो गेय को नहीं ज्ञान को मजबूत बनाओ क्योंकि भारत ज्ञान की खान है । विज्ञान नहीं बल्कि वीतरागी विज्ञानं ही देश की दिशा और दशा बदल सकता है उस ज्ञान की तरफ कदम बढ़ाना आवश्यक है । आचार्य श्री ने कहा की आज प्रदेश में 80 हजार इंजीनियर बैंकों द्वारा दिए शिक्षाके कर्ज को नहीं चूका पा रहे हैं क्योंकि रोजगार के अवसर नहीं हैं । नोकरी के पीछे लोग दीवाने हो रहे हैं पहले सेवा के पीछे दीवाने होते थे । आज शिक्षा के साथ साथ कौशल विकास के क्षेत्र को मजबूत बनाने की जरूरत है जब युवा हुनरमंद बनेंगे तभी स्वाबलंबी और स्वरोजगारी बन सकेंगे तभी रोजगार के अवसर पैदा हो सकेंगे । आचार्य श्री ने कहा की उपयोगिता के आभाव में शिक्षा बेकार सिद्ध हो रही है क्योंकि सौराष्ट्र और महाराष्ट्र होते हुए भी सब धृतराष्ट्र बने हुए हैं इसीलिए आज हाथों को हुनर सिखाने की जरूरत है । हथकरघा , हस्तशिल्प , माटिकला ,तकनीकी कार्य को बढ़ाबा देने की जरूरत है तभी हम रोजगारोन्मुखी देश की और बढ़ सकेंगे । सूर्य के पास कोई कला नहीं है परंतु प्रभाव इतना तीव्र होता है की बो अपना एहसास सभी को करा देता है । ऐंसे ही युवाओं के भीतर प्रभाव तो है बस उसको जाग्रत करने की आवश्यकता है । श्रम के बिना और श्रमणों की पूजा के बिना ये देश प्रभाबशाली नहीं बन सकता । भारत की मर्यादा खेती किसानी है , श्रमिक है । खेती भारत की बाड़ी है इसलिए खेतीबाड़ी है । सरस्वती और लक्ष्मी दोनों को एक सूत्र में बंधने की आवश्यकता है । शिक्षा को प्राचीनता और इतिहास का जामा पहनाएं तभी शिक्षा सार्थक होगी । पैरों से चलें और हाथों से हाथ मिलाते रहें , जब एक से एक मिलेगा तो ग्यारह बन जाएगा ।
जब धरती बहुत प्यासी होती है और आशा भरी निगाहों से बादलों की तरफ देखती है तब बादलों को धरती पर दया आ जाती है और बो ताबड़तोड़ और धुंआधार तरीके से बरस पड़ते हैं ऐंसे ही दया और करुणा की प्रति मूर्ती पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज आज अपनी शब्द गर्जनाओं के साथ लोकतंत्र की चरमराती व्यस्थाओं से व्यथित होकर बरस पड़े और ज्ञान का ऐंसा दीपक प्रज्ज्वलित कर दिया जिसके प्रकाश से सभी प्रकाशित हो गए । राष्ट्रभाषा के प्रति उनके भीतर जो अग्नि देहक रही है उसके शोले आज पूरी तरह से भड़कते दिखाई दिए साथ ही शिक्षा की चरमराती व्यवस्था और युगधर्म के मकड़जाल में ध्वस्त हुए धर्मयुग को पुनः प्रतिष्ठापित करने की नसीहत उन्होंने दे डाली । उन्होंने चुटकी लेते हुए नेताओं की बंद पड़ी गाडी को धक्का देकर देश की गाडी को चलाने का दिशानिर्देशन देकर युवाओं के मानस को झकझोर कर रख दिया । उन्होंने नारी की व्यथा को समझते हुए पुरुषों को पुरुषार्थ करने की जो बात कही उसमें बहुत गहराई दिखाई दी । उन्होंने युवाओं की तुलना सूर्य से करते हुए कहा क़ि सूर्य का प्रभाब लोगों को तपन का एहसास कराता है बैसे ही पुरुषार्थ करने वाला युवा भी सूर्य जैंसी तपन से परिपूर्ण होता है बस जरूरत इस बात की है की उस तपन को उसके हुनर के माध्यम से बाहर निकालकर ऊर्जा के संचार से परिपूर्ण करने की कोशिश होनी चाहिए । आज बिशेष बात ये थी की गुरुवर ने संयम धर्म पर प्रवचन करने की बजाय अपने संयम और धैर्य पर से नियंत्रण हटाकर अहिंसा की रक्षा करने के लिए भी तत्पर होने की सलाह श्रावकों को दी।।
आज मौलाना आजाद राष्ट्रीय तकनीकी संसथान के 10 राज्यों के लगभग 1500 विद्यार्थियों और विद्या भारती के लगभग 600 विद्यार्थियों ने जब सुभाष स्कूल में प्रवेश किया तो चातुर्मास समिति की और से पंकज टेलर , सुनील अरिहंत , जिनेन्द्र sp और अन्य मित्रों ने चन्दन के तिलक से उनका अभिनन्दन किया और पंकज सुपारी , आदित्य मनिया , विनोद चौधरी अनुपम केसंयोजकत्व् में फोल्डर तथा अन्य सामग्री वितरित की । कार्यक्रम का सञ्चालन मैनिट के प्रोफ़ेसर शैलेन्द्र जैन ने किया ।
शब्द संचयन
पंकज प्रधान
अपना देश अपनी भाषा
इंडिया हटाओ, भारत लाओ। – आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
"रविवारीय धर्मसभा का"
"सुन लो भईया सार"
(आचार्या श्री के 11 सितम्बर के प्रवचनो पर आधारित)
रविवारीय धर्मसभा का
सुनलो भैय्या सार
युगधर्म को छोडो
धर्मयुग को पुनः करो स्वीकार।
गीत गाना बंद करो और
छोडो अपने निज स्वार्थ
मेंहनत का पसीना बहाओ
और करो पुरुषार्थ
जिसमें हो परमार्थ
ऐंसी नीति करो तय्यार
युगधर्म को छोडो
धर्मयुग को पुनः करो स्वीकार।
भाषा का कोई महत्व नहीं
संस्कृति के भाव जगाओ
लगा वैश्विक भाषा का जो भूत
पहले उसे भगाओ
हिंदी दिवस न हो एक दिन
हो ये बारम्बार
युगधर्म को छोडो
धर्मयुग को पुनः करो स्वीकार।
सोये नेताओं को धक्का मारो
देश की गाड़ी आगे बढ़ेगी
कौशल विकास को दो बढ़ावा
विकास की दर ऊपर चढ़ेगी
हर हाथ को काम दो
दो सबको अधिकार
युगधर्म को छोडो
धर्मयुग को पुनः करो स्वीकार।
ताश के बावन पत्तों की कीमत
जोकर का नहीं कोई मोल
दस पत्तों के साथ मिलादो तो
जोकर हो जाय अनमोल
अर्थतंत्र रुपी जोकर को
पहुचाओ विश्व बाजार
युगधर्म को छोडो
धर्मयुग को पुनः करो स्वीकार।
गेय को बहुत मजबूत बनाया
अब मजबूत बनाओ ज्ञान को
विज्ञानं का चक्कर छोडो
पकड़ो भेदविज्ञान को
उपयोगिता के आभाव में
शिक्षा हो गई बेकार
युगधर्म को छोडो
धर्मयुग को पुनः करो स्वीकार।
अपने ही देश में विकसित हैं
महाराष्ट्र और सौराष्ट्र
सही दिशा के आभाव में
बने सभी धृतराष्ट्
खेतीबाड़ी को विकसित कर
विकास का बनाओ आधार
युगधर्म को छोडो
धर्मयुग को पुनः करो स्वीकार।
सूर्य के पास कोई कला नहीं
चंद्रमा कला से है भरपूर
जब सूर्य का प्रकाश फैले तो
अन्धकार हो दूर
युवा श्रम का सूर्य बनें
स्वयं का करें कारोबार
युगधर्म को छोड़कर
धर्मयुग को पुनः करो स्वीकार।।।
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