सत्य धर्म पर आचार्य श्री के प्रवचन


10 सितम्बर
दोपहर 3 बजे
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भोपाल ।

      इस अवसर पर   पूज्य गुरुवर आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा की सत्य क्या है, संसार की कल्पनाएं असत्य हुआ करती हैं , द्रव्य का लक्षण सत्य होता है । स्वप्न जो साकार होते हैं उनका पूर्वाभास माहनआत्माओं को हो जाता है । 16 स्वप्न माता को दिखाई देते हैं और तीर्थंकर के आगमन का आभास हो जाता है  । उनके आने के पूर्व ही भोर का उदय हो जाता है एक आभा सूर्य के आभाव में भी सत्य का प्रकाश बिखेरती है । महापुरुष के जीवन में भी इसी प्रकार की सत्य की आभा फूटने लग जाती है ,ऐंसा सत्य का प्रभाव होता है। ऐंसे ही छोटा सा दीपक भी सूर्य की भांति चमकता है और असत्य के घोर अन्धकार को प्रकाशित करने में सामर्थवान होता है । जो भागते हैं उन्हें पकड़ना कठिन होता है , महान आत्माओं से मुलाकात तभी हो सकती है जब सत्य के मार्ग का अनुशरण करेंगे , सत्य का मार्ग पकड़ना पड़ता है।
   

         उन्होंने कहा की जब तीर्थ वंदना करते हैं आधी रात को तो दीखता कुछ नहीं है परंतु तीर्थ की पगडण्डी पर कदम अपने आप चलने लग जाते हैं क्योंकि सत्य के दर्शन की अनुभूति मन में रहती है ,बुजुर्गों के क़दमों में भी अद्भुत शक्ति आ जाती है । सत्य का उदघाटन तभी होता है जब मन में कोई प्रेरणा जागृत होती है।
   

        गुरुवर ने आगे कहा की  रात में ही तारे नहीं होते बल्कि दिन में भी तारे होते हैं परंतु ज्ञान के आभाव में दिखाई नहीं देते परंतु जिन्होंने सत्य को जीत लिया है ऐंसे महापुरुष प्रेरणा पुंज के रूप में दिखाई देते हैं । आध्यात्म जगत के चमकते सितारे अपनी आभा को सदैव बिखेरते रहते है । सूर्य के सामने चंद्रमा कभी प्रकट नहीं होता क्योंकि सूर्य नितांत अकेला होता है जबकि चंद्रमा के समक्ष तारे और सभी ग्रह प्रकट होते हैं बो एक परिवार से घिरा होता है जबकि सूर्य संत के समान है इसलिए एकाकी भाव लेकर रहता है और सारे जग को प्रकाशित करता रहता है ।  मनुष्य एक अलग विचित्र प्राणी है । सत्य को ख़रीदा नहीं जाता बल्कि सत्य तो छना हुआ शुद्ध होता है जबकि असत्य भाड़े में भी मिल जाता है कभी भी कहीं भी । भगवान् महावीर के अनेक नाम हैं परंतु उनकी उपलब्धि उनके जीवन से ,उनकी तपस्या से ,उनके सत्य आचरण से परिलक्षित होती है ,कम समय में उन्होंने अपने आत्मतत्व को पहचानकर निर्वाण की प्राप्ति की थी । बाजार तो भावों के तारतम्य से ऊपर नीचे होता रहता है परंतु महावीर ने अपने भावों को नियंत्रित कर लिया ,सत्य पर विजय प्राप्त कर ली । करुणा ,अनुग्रह, दया उनकी जागृत हो गयी थी सब जीवों के प्रति । मेरु पर्वत किसी से हिल नही सकता परंतु जब महावीर बालक थे तो उनके प्रभाव से मेरु पर्वत भी हिल गया था और सोधर्म इंद्र भी आवाक रह गया था , सारे इंद्रलोक में हलचल मच जाती है , ज्ञात हो जाता है की सत्य का प्रकाश धरती पर आ चूका है । महावीर सत्य के एक पुंज थे जिनकी आभा ने पृथ्वी को प्रकाशित कर दिया था।


      आचार्य श्री ने कहा की पुरुषार्थ से दिगम्बर वीतरागी मुद्रा को धारण करने बाले हमेशा सत्य के निकट होते हैं । सत्य की सिद्धि के लिए नहीं बल्कि सत्य को प्राप्त होने के लिए कमर कस लो ,सत्य आपके इर्द गिर्द दिखाई देने लग जायेगा । सत्य बिरले लोगों की पूँजी हुआ करता है सबके पास नहीं रुक पाता है । सत्य की पहचान तो देवलोक के सबसे शक्तिशाली इंद्र सौधर्म को भी नहीं हो पाई थी ,जबकि उसकी इन्द्राणी का अवसान हो गया तो भी बो सत्य को नहीं जान पाया । सत्य को जानने के लिए भीतर से वीतरागी होना पड़ता है ,अपने मन को नियंत्रित करना होता है ,ये महावीर ने सिद्ध करके दुनिया को दिखाया । तीर्थंकरो का आकाल पड जाता है परंतु सौधर्म इंद्र हमेशा हर काल में रहते हैं क्योंकि तीर्थंकर बिरले ही होते हैं । महापुरुषों ने सत्य का दीपक अपने जीवन में प्रज्जवलित किया और बो सत्य का दीपक सदियों के बाद भी आज दुनिया को प्रकाशित कर रहा है । छायिक सम्यक दर्शन से ,श्रद्धान से ही सत्य रुपी केवलज्ञान प्रकट होता है , कल्याण की और युग की प्रतीक्षा नहीं होती बो तो पुरुषार्थ से प्रकट होता है।
     

      गुरुवर ने कहा की नींद और मूर्छा में अंतर होता है ,सुख की नींद उसे ही आती है जो सत्य के निकट होता है जो नींद की गोली खाते हैं बो मूर्छित हो जाते हैं उन्हें फिर स्वप्न भी नहीं आ सकते हैं । सुख की नींद आसानी से नहीं आ सकती क्योंकि मन में निश्चिन्ता नहीं है , मन चलायमान रहता है बिषय भोगों में , आशक्ति में । मन का केंद्रीय करण करने पर ही सुख की नींद आ सकती है । ध्यान तभी लग सकता है जब भावनाओं में बदलाब आता है , और सत्य की खोज ध्यान के माध्यम से ही होती है । जो पाने की खोज में लगे हैं सत्य प्राप्त नहीं हो सकता जो खोना चाहते हैं बे खुद ही सत्य का एक पिंड बन जाया करते हैं फिर दुनिया उस पिंड को नमस्कार करती है।


अपना देश  अपनी भाषा
इंडिया हटाओ, भारत लाओ। – आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

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   【शब्द संचयन】
        पंकज प्रधान

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